नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी पेशेवर का ज्ञान परखने में कुछ भी गलत नहीं है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी छत्तीसगढ़ के तीन चिकित्सकों की एक अपील पर की, जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्हें अल्ट्रासाउंड विशेषज्ञ (अल्ट्रासोनोलॉजिस्ट) के तौर पर प्रैक्टिस जारी रखने के लिये परीक्षा देने को मजबूर किया जा रहा है। अदालत ने कहा कि किसी पेशेवर के कौशल को परखना गलत नहीं है, इससे अंतत: मरीज को ही फायदा होगा।
न्यायालय ने कहा कि हालांकि 15 साल या उससे अधिक समय से अल्ट्रासोनोग्राफी कर रहे वरिष्ठ एमबीबीएस डॉक्टर अगर परीक्षा नहीं देना चाहते, तो भी उन्हें प्रैक्टिस जारी रखने की अनुमति दी जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, यहां तक कि वकीलों को भी कानून की प्रैक्टिस करने के लिये परीक्षा देने के लिये कहा जाता है। अगर किसी पेशेवर के ज्ञान को परखा जाता है, तो हमें इसमें कुछ भी गलत दिखाई नहीं देता।
पीठ ने पूछा कि इसमें क्या गलत है कि अगर कोई योग्य पेशेवर रोगियों का इलाज कर रहा है। पीठ ने रोबोटिक सर्जरी का उदाहरण देते हुए कहा कि कई वरिष्ठ चिकित्सक चिकित्सा विज्ञान के इस पहलू से परिचित नहीं हैं। याचिकाकर्ता चिकित्सकों अनिल वस्ती, मंजीत सिंह चंद्रसेन और भास्कर प्रसाद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि 2014 के नियमों को अतीत में हुई घटनाओं के के आधार पर प्रभावी किया गया है, जिनके मुताबिक प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को भी परीक्षा देनी होगी।
उन्होंने कहा कि किसी भी नियम को अतीत में हुई घटनाओं के प्रभाव के आधार पर लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि 20 साल का अनुभव रखने वाले चिकित्सक को परीक्षा देने के लिये कैसे कहा जा सकता है। इसके बाद अदालत ने रोहतगी की दलीलों पर सहमति जताते हुए कहा कि उनके मुवक्किल अगर परीक्षा नहीं भी देना चाहते तो वे अल्ट्रासोनोलॉजिस्ट के तौर पर प्रैक्टिस जारी रख सकते हैं।